hari om sharma – blog

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सराहना करना सीखें

मगर इन चंद शब्दों का जादू कुछ ऐसा होता है कि आप और भी बेहतर करने की कोशिश करते है। हम सभी के लिए तारीफ एक टोनिक की तरह काम करतीहै, जो हमें और भी बेहतर कार्य करने के लिए प्रोत्साहित करती है।

क्यों जरुरी है सराहना करना :

सराहना या तारीफ, एक तरह का प्यार है जिसे हर मनुष्य चाहता है इसलिए इसमें किसी प्रकार की कटौती करना ठीक बात नही है। हाँ, यह सही है


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अपने खिलाफ

यह सवाल बड़ा अहम है कि हम अपने लिए जी रहे हैं या दूसरों के लिए? हम जीवन में बहुत कुछ पाना चाहते हैं इसके लिए हम तरह-तरह के समझौते करते हैं। सबसे पहले हम अपने मन को मार लेते हैं। हम दूसरों को प्रसन्न करने में लग जाते हैं। वही बोलना शुरू कर देते हैं, जो दूसरों को अच्छा लगे। हम कोशिश करते हैं कि ऐसा व्यवहार करें जो हमें दूसरों के बीच स्वीकार्य बनाए। पर अगर ठहरकर सोचें तो पता चलेगा कि जीवन में हम केवल झूठ बोल रहे हैं या वह बोल रहे हैं, जो दरअसल हम बोलना नहीं चाहते। ऐसा हम इसलिए करते हैं क्योंकि हमें अपने जीवन के लिए बहुत सी चीजें चाहिए। न सिर्फ भौतिक बल्कि सम्मान-प्रतिष्ठा जैसी बहुत सी अमूर्त चीजें भी। इस तरह हम अपने लिए बहुत कुछ जुटाते हुए वास्तव में खुद के खिलाफ कार्य कर रहे होते हैं। अपने को खत्म कर जीना चाहते हैं। यह विचित्र है कि आधुनिक और विकसित कही जाने वाली सभ्यता ने हमें सबसे ज्यादा अपने खिलाफ खड़ा होना सिखाया है।


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सुरक्षा की चिंतित

मनुष्य सामाजिक जीवन में अपनी सुरक्षा को लेकर हमेशा चिंतित रहता है। शारीरिक सुरक्षा तो है ही, लेकिन ज्यादा अहम है आर्थिक-सामाजिक सुरक्षा, जिसे हम हैसियत कह सकते हैं। पहले तो व्यक्ति बड़ी मशक्कत से यह हासिल करता है। इसके लिए तरह-तरह की कवायद करता है, खेल करता है। लेकिन दिलचस्प तो यह है कि इसके बाद भी वह सुरक्षित महसूस नहीं करता बल्कि वह और ज्यादा असुरक्षित महसूस करने लगता है।

उसे हमेशा यह डर सताता रहता है कि कहीं उसकी हैसियत चली न जाए। इस भय का दूसरा रूप यह भी होता है कि कहीं दूसरा भी उसके बराबर न हो जाए। ऐसा व्यक्ति दूसरों को ज़रा भी आगे बढ़ते देख परेशान हो उठता है जैसे वह व्यक्ति उसी को चुनौती देने आ रहा हो। जैसे वह उसका सब कुछ छीन लेगा। तो होता यह है कि जो जितना सुरक्षित हो जाता है, वह वास्तव में उतना ही असुरक्षित होता है। जबकि दूसरी तरफ जो इस फेर में ज्यादा नहीं पड़ता, वह असुरक्षा के भय से अपेक्षाकृत मुक्त रहता है। उसे हर मनुष्य चुनौती देता हुआ नहीं लगता।