सबसे पहले यह जान लेना जरूरी है कि मंत्र क्या होते हैं? उनका उपयोग कैसे किया जाता है और उच्चारण या जाप कैसे किया जाना चाहिए। साथ ही यह भी जानें कि जातक का मंत्रों के जाप से किस तरह के लाभ मिल सकते हैं?
हजारों वर्षों से प्राचीन वैदिक ज्योतिष (vedic jyotish) एक व्यक्ति के जीवन को आसान बनाने के बारे में रहा है। ऐसा करने के लिए वैदिक ज्योतिष में तीन प्रमुख उपाय हैं, मंत्र, यंत्र और रत्न।
मंत्र (mantra) जाप समस्याओं को समझने और उन्हें हल करने का ना केवल सरल उपाय है बल्कि भगवान और ग्रहों को प्रसन्न करने के सबसे अच्छा तरीका भी है। वास्तव में, मंत्र जाप से आत्म संतुष्टि मिलती है और विचलित मन शांत होता है। इसलिए ज्योतिष में मंत्रों का केवल आध्यात्मिक लाभ ही नहीं होता बल्कि मनोवैज्ञानिक लाभ भी मिलता है।
मंत्राें के सही उच्चारण से जातक को सार्वभौमिक ऊर्जा और आध्यात्मिक ऊर्जा पर केंद्रित करने में मदद मिलती है। मंत्र दुनिया में हजारों वर्षों से मौजूद हैं और वेदों सहित अतीत में लिखी गई कई धार्मिक पुस्तकों में इनका उल्लेख भी मिलता है। कई वर्षों में ऋषियों ने ज्योतिष में मंत्रों के पाठ के लाभों को महसूस किया है, वे मंत्रों की सूची में शामिल हो गए हैं।
मंत्र का सार इसके ‘मूल शब्द’ या बीज से आता है और इससे उत्पन्न शक्ति मंत्र शक्ति कहलाती है। मंत्र में प्रत्येक मूल शब्द किसी ग्रह या भगवान से जुड़ा होता है। मंत्र जाप शारीरिक रूप से आपको अपनी ध्वनि, श्वास और इंद्रियों पर केंद्रित करने के लिए प्रेरित करता है। मंत्रों द्वारा उत्पन्न ध्वनि में आपकी भावनाओं और आपके सोचने के तरीके को पूरी तरह से बदलने और आपको उच्च आध्यात्मिक स्तर पर ले जाने की क्षमता होती है। वास्तव में, नियमित रूप से मंत्रों का जाप व्यक्ति में आध्यात्मिक जागरूकता की भावना पैदा करता है और उसे जिंदगी को शांतिपूर्ण तरीके से जीने में मदद करता है।
मंत्र’ मूल रूप से प्राचीन संस्कृत भाषा का शब्द है। मंत्र दो शब्दों ‘मन’ और ‘त्र’ से मिलकर बना है। ‘मन’ का अर्थ है मन यानी चित्त और ‘त्र’ जिसका अर्थ है ‘उपकरण या यंत्र’। इस प्रकार एक मंत्र और कुछ नहीं बल्कि सोचने का एक यंत्र है। जब आप अपनी क्षमताओं के बारे में सोचते हैं, तभी आप अपनी जिंदगी में आवश्यक परिवर्तन कर सकते हैं। लेकिन यह सवाल जरूर पूछा जाना चाहिए कि आखिर हमारी सोचने की प्रक्रिया इतनी जटिल क्यों है? ज्योतिषियों का मानना है कि मनुष्य केवल बौद्धिक प्राणी नहीं है बल्कि भावनात्मक प्राणी भी है। मनुष्य को अपनी भावनात्मक कुशाग्रता के आधार पर निर्णय लेने की आदत होती है। इससे कई बार मन और भावनाओं का संतुलन बिगड़ जाता है। इस वजह से जातक कई बार फैसले लेने में भ्रमित हो जाता है। ऐसी स्थिति में मन को अपनी भावनाओं से जोड़ने के लिए मंत्र काम में आता है।
हमारा मन हमेशा कार्यशील रहता है। जबकि मंत्र जाप एक यंत्र के रूप में कार्य करता है और मन को कुछ देर के लिए स्थिर रखता है। इस तरह मन को कुछ देर के लिए विश्राम मिलता है। आप इसे इस तरह समझें, अगर अभी हमारा मन शांत होगा, तो हम अवचेतन मन से जुड़ पाएंगे। मंत्र हमें गहराई से सोचने के लिए जागरूक बनाता है, जिस वजह से हम अपनी जिंदगी में बेहतर निर्णय ले पाते हैं। आपको बताते चलें कि ज्योतिष में कुछ मंत्र केवल मधुर वाक्यांश हैं, जिनका कोई विशेष अर्थ भी नहीं है। उनका एकमात्र उद्देश्य किसी व्यक्ति की इंद्रियों को संगीत के रूप से ऊपर उठाना है, क्योंकि संगीत हमारी भावनाओं को सकारात्मक रूप से प्रभावित करता है। इस तरह, व्यक्ति मन और मस्तिष्क के बीच सही संतुलन से अपनी जिंदगी के लिए बेहतर निर्णय लेने में सक्षम होता है।
जिस तरह किसी भी चीज को आदत में लाने के लिए 21 दिन लगते हैं, उसी तरह आपकी चेतना को आध्यात्मिकता और मानसिक शांति की ओर ले जाने में लगभग 40 दिन का समय लगता है। यदि आप मंत्र जाप का अभ्यास करना चाहते हैं तो 40 दिनों के चक्र में दिन में 108 बार मंत्र का जाप करना चाहिए। मंत्र उच्चारण से सबसे अच्छा फल पाने के लिए ध्यान कंद्रित करना भी जरूरी होता है। इसके अलावा संख्या 108, नाड़ियों की संख्या को संदर्भित करती है, जिन्हें मंत्र के आनंदमय पहलुओं को महसूस करने के लिए सक्रिय होने की आवश्यकता होती है।
अधिकांश मंत्र संस्कृत में इसलिए लिखे गए हैं क्योंकि संस्कृत के शब्द शुद्ध कंपन (स्पंदन) उत्पन्न करते हैं। संस्कृत में मंत्र लिखे होने की वजह से ये चक्र में अवरोध पैदा नहीं होने देते। मंत्रों का इतिहास 1000 ईसा पूर्व के ग्रंथों में देखे जा सकते हैं। ‘ओम’ शब्द सबसे छोटा और सरल मंत्र है। माना जाता है कि पृथ्वी में उत्पन्न होने वाली यह पहली ध्वनि है। इसे और सरल भाषा में समझें कि मंत्र आध्यात्मिक व्याख्याओं के साथ मधुर वाक्यांश होते हैं जैसे कि सत्य, वास्तविकता, प्रकाश, अमरता, शांति, प्रेम, ज्ञान और क्रिया। ऋग्वेद संहिता में लगभग 10552 मंत्र हैं, जिन्हें मंडल नामक दस पुस्तकों में वर्गीकृत किया गया है।
जब मंत्रों के प्रकार की बात की जाती है, तो यहां तीन प्रकार के मंत्र हैं, बीज मंत्र, सगुण मंत्र और निर्गुण मंत्र।
1. बीज मंत्र (beej mantra)
सबसे पवित्र मंत्रों में से एक ‘ओम’ है। यह एक बीज मंत्र है, जिसका अर्थ है एक बीज ध्वनि जो सभी मंत्रों का आधार बनती है। ओम एक सार्वभौमिक बीज मंत्र है क्योंकि इसे विभिन्न धर्मों में स्थान मिला है। कई और भी बीज मंत्र हैं बीज मंत्र किसी न किसी देवता से जुड़ा हुआ है। जब ध्यान और भक्ति के साथ जप किया जाता है, तो बीज मंत्र किसी भी जातक की इच्छा को पूरा करने में मदद करते हैं।
2. सगुण मंत्र (saguna mantra)
सगुण एक संस्कृत शब्द है। इसका अर्थ है, “गुणों के साथ” या “गुण युक्त।” सगुण मंत्रों को देवता मंत्र कहा जाता है, क्योंकि वे अक्सर परमात्मा के किसी न किसी रूप पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
3. निर्गुण मंत्र (nirguna mantra)
निर्गुण मंत्र, जिनके बारे में कहा जाता है कि वे वैदिक ग्रंथों से उत्पन्न हुए हैं और इस प्रकार यह सबसे पुराने मंत्र हैं। इन शब्दों से किसी देवता का आह्वान नहीं किया जाता है। निर्गुण मंत्रों की व्याख्या करना बहुत कठिन है और माना जाता है कि उनका कोई विशिष्ट रूप या अर्थ नहीं है। कहा जाता है कि इन मंत्रों की पूरी सृष्टि के साथ अपनी पहचान है और योग दर्शन में मौलिक सत्य समाहित हैं। ऐसा कहा जाता है कि अमूर्त निर्गुण मंत्रों पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम होने के लिए मस्तिष्क का मजबूत होना बहुत जरूरी है।