मंत्रों के प्रकार
मंत्र दो प्रकार के होते हैं वैदिक मंत्र एवं तांत्रिक मंत्र
वैदिक संहिताओं की समस्त ऋचाएं वैदिक मंत्र कहलाती हैं, और तंत्रागमों में प्रतिपादित मंत्र तांत्रिक मंत्र कहलाते हैं
तांत्रिक मंत्र तीन प्रकार के होते हैं – बीज मंत्र, नाम मंत्र एवं माला मंत्र..
बीज मंत्र भी तीन प्रकार के होते हैं – मौलिक बीज, यौगिक बीज तथा कूट बीज, इनको कुछ आचार्य एकाक्षर, बीजाक्षर एवं घनाक्षर भी कहते हैं.
इसी तरह माला मंत्र दो प्रकार के होते हैं – लघु माला मंत्र एवं बृहद माला मंत्र
जब बीज अपने मूल रूप में रहता है, तब मौलिक बीज कहलाता है, जैसे- ऐं, यं, रं, लं, वं, क्षं आदि
जब यह बीज दो वर्षो के योग से बनता है, तब यौगिक कहलाता है, जैसे- ह्रीं, क्लीं, श्रीं, स्त्रीं, क्ष्रौं आदि
इसी तरह जब बीज तीन या उससे अधिक वर्षो से बनता है तब यह कूट बीज कहलाता है
बीज मंत्रों में समग्र शक्ति विद्यमान होते हुए भी गुप्त रहती है..
नाम मंत्र -बीज रहित मंत्रों को नाम मंत्र कहते हैं, जैसे- ॐ नम: शिवाय, ॐ नमो नारायणाय एवं ॐ नमो भगवते वासुदेवाय
माला मंत्र कुछ आचार्यो के अनुसार 20 अक्षरों से अधिक और अन्य आचार्यो के अनुसार 32 अक्षरों से अधिक अक्षर वाला मंत्र माला मंत्र कहलाता है,
जैसे
ऊँ क्लीं देवकीसुत गोविंद वासुदेव जगत्पते,
देहि में तनयं कृष्ण त्वामहं शरणं गत:
मानव शरीर में 108 जैविकीय केंद्र (साइकिक सेंटर) होते हैं जिसके कारण मस्तिष्क से 108 तरंग दैर्ध्य (वेवलेंथ) उत्सर्जित करता है
इसीलिए हमारे ऋषि-मुनियों ने मंत्रों की साधना के लिए 108 मनकों की माला तथा मंत्रों के जाप की आकृति निश्चित की है.. मंत्रों के बीज मंत्र उच्चारण की 125 विधियाँ हैं.. मंत्रोच्चारण से या जाप करने से शरीर के 6 प्रमुख जैविकीय ऊर्जा केंद्रों से 6250 की संख्या में विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा तरंगें उत्सर्जित होती हैं, जो इस प्रकार हैं :
मूलाधार 4×125=500
स्वधिष्ठान 6×125=750
मनिपुरं 10×125=1250
हृदयचक्र 13×125=1500
विध्रहिचक्र 16×125=2000
आज्ञाचक्र 2×125=250
कुल योग 6250 (विद्युत चुम्बकीय ऊर्जा तरंगों की संख्या)
भारतीय कुंडलिनी विज्ञान के अनुसार मानव के स्थूल शरीर के साथ-साथ 6 अन्य सूक्ष्म शरीर भी होते हैं
मानव शरीर से 64 तरह की सूक्ष्म ऊर्जा तरंगें उत्सर्जित होती हैं, जिन्हें ‘धी’ ऊर्जा कहते हैं जब धी का क्षरण होता है तो शरीर में व्याधि एकत्र हो जाती है मंत्रों का प्रभाव वनस्पतियों पर भी पड़ता है जैसा कि बताया गया है कि चारों वेदों में कुल मिलाकर 20 हजार 389 मंत्र हैं प्रत्येक वेद का अधिष्ठाता देवता है ऋग्वेद का अधिष्ठाता ग्रह गुरु है। यजुर्वेद का देवता ग्रह शुक्र, सामवेद का मंगल तथा अथर्ववेद का अधिपति ग्रह बुध है मंत्रों का प्रयोग ज्योतिषीय संदर्भ में अशुभ ग्रहों द्वारा उत्पन्न अशुभ फलों के निवारणार्थ किया जाता है
बीज मंत्रों के अक्षर गूढ़ संकेत होते हैं
इनका व्यापक अर्थ होता है बीज मंत्रों के उच्चारण से मंत्रों की शक्ति बढ़ती है.. क्योंकि, यह विभिन्न देवी-देवताओं के सूचक है
ह्रीं इस मायाबीज में ह्= शिव, र= प्रकृति, नाद= विश्वमाता एवं बिंदु=
दुखहरण है इस प्रकार मायाबीज का अर्थ है- शिवयुक्त जननी आद्य शक्ति मेरे दुखों को दूर करें
श्री [श्री बीज या लक्ष्मी बीज]:
इस लक्ष्मी बीज में श्= महालक्ष्मी, र= धन संपत्ति, ई= महामाया, नाद= विश्वमाता एवं बिन्दु= दुखहरण है.. इस प्रकार इस का अर्थ है धन संपत्ति की अधिष्ठात्री जगजननी मां लक्ष्मी मेरे दुख दूर करें।
ऎं [वाग्भव बीज या सारस्वत बीज]:
इस वाग्भव बीज में ऎ= सरस्वती, नाद= जगन्माता और बिंदु= दुखहरण है… इस प्रकार इस बीज का अर्थ है- जगन्माता सरस्वती मेरे ऊपर कृपा करें
क्लीं [कामबीज या कृष्णबीज]:
इस कामबीज में क= योगस्त या
श्रीकृष्ण, ल= दिव्यतेज, ई= योगीश्वरी या योगेश्वर एवं बिंदु= दुखहरण इस प्रकार इस कामबीज का अर्थ है- राजराजेश्वरी योगमाया मेरे दुख दूर करें कृष्णबीज का अर्थ है योगेश्वर श्रीकृष्ण मेरे दुख दूर करें
क्रीं [कालीबीज या कर्पूरबीज]:
इस बीज मंत्र में क= काली, र= प्रकृति,
ई= महामाया, नाद= विश्वमाता, बिंदु= दुखहरण है.. इस प्रकार इस बीजमंत्र का अर्थ है, जगन्माता महाकाली मेरे दुख दूर करें…
गं [गणपति बीज]:
इस बीज में ग्= गणेश, अ= विƒननाशक एवं बिंदु= दुखहरण है। इस प्रकार इस बीज का अर्थ विƒननाशक श्रीगणेश मेरे दुख दूर करें।
दूं [दुर्गाबीज]:
इस दुर्गाबीज में द्= दुर्गतिनाशनी दुर्गा, = सुरक्षा एवं बिंदु= दुखहरण है… इस प्रकार इसका अर्थ है दुर्गतिनाशनी दुर्गा मेरी रक्षा करे और मेरे दुख दूर करे…
हौं [प्रसादबीज या शिवबीज]:
इस प्रसाद बीज में ह्= शिव, औ= सदाशिव एवं बिंदु= दुखहरण है… इस प्रकार इस बीज का अर्थ है,भगवान शिव एवं सदाशिव मेरे दुखों को दूर करें
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लिंगों के अनुसार मंत्रों के तीन भेद होते हैं
पुर्लिंग : जिन मंत्रों के अंत में हूं या फट लगा होता है
स्त्रीलिंग : जिन मंत्रों के अंत में ‘स्वाहा’ का प्रयोग होता है
नपुंसक लिंग : जिन मंत्रों के अंत में ‘नमः’ प्रयुक्त होता है
नवग्रहों के मूल मंत्र
सूर्य : ॐ सूर्याय नम:
चन्द्र : ॐ चन्द्राय नम:
गुरू : ॐ गुरवे नम:
शुक्र : ॐ शुक्राय नम:
मंगल : ॐ भौमाय नम:
बुध : ॐ बुधाय नम:
शनि : ॐ शनये नम: अथवा ॐ शनिचराय नम:
राहु : ॐ राहवे नम:
केतु : ॐ केतवे नम:
नवग्रहों के बीज मंत्र
सूर्य : ॐ ह्रां ह्रीं ह्रौं स: सूर्याय नम:
चन्द्र : ॐ श्रां श्रीं श्रौं स: चन्द्राय नम:
गुरू : ॐ ग्रां ग्रीं ग्रौं स: गुरवे नम:
शुक्र : ॐ द्रां द्रीं द्रौं स: शुक्राय नम:
मंगल : ॐ क्रां क्रीं क्रौं स: भौमाय नम:
बुध : ॐ ब्रां ब्रीं ब्रौं स: बुधाय नम:
शनि : ॐ प्रां प्रीं प्रौं स: शनये नम:
राहु : ॐ भ्रां भ्रीं भ्रौं स: राहवे नम:
केतु : ॐ स्त्रां स्त्रीं स्त्रौं स: केतवे नम: